देखें वो, जो कहते फिरते हैं,"ये कौम बदल नहीं सकती"--दर्शन 'रत्न' रावण
देखें वो, जो कहते फिरते हैं,"ये कौम बदल नहीं सकती"--दर्शन 'रत्न' रावण
कभी सोचा ?
इसी कौम का बन्दा जब ईसाई बन जाता है तब बहुत क़ायदे के साथ बगल में बाईबल दबाए पूरे अनुशासन और आस्था से चर्च की ओर जाता मिलेगा।
ऐसे ही जब कोई इस्लाम स्वीकार कर लेता है तब वह भी चिन्ता के साथ पाँचों वक्त की नमाज़ अदा करने मसज़िद पहुँच जाता है। पाँच बार जाने पर भी उसे कोई दिक्कत नहीं होती।
फिर वाल्मीकि अनंत की के प्रति उसकी आस्था क्यों नहीं ?
मस्जिद या चर्च में अपने घर का टूटा-फूटा सामान क्यों नहीं रखता ?
तांश खेलने या भांग रगड़ने मस्जिद या चर्च में क्यों नहीं जाता ?
औरतें आमने बच्चों को खेलने के लिए चर्च या मस्जिद के प्रांगण में क्यों नहीं भेजती ?
जवाब एकदम सीधा और साफ़ है। जिस स्कूल का प्रिंसिपल खुद अनुशासन में होगा। वह स्कूल उसका सारा स्टाफ और बच्चे क़ायदे में होंगे।
हकीकत यह है कि हमारे संतों को वाल्मीकि नाम, वाल्मीकि धर्म और वाल्मीकि परमेश्वर से प्यार ही नहीं। हमारे सन्तों की आस्था कहीं ओर है और ठिकाना कहीं ओर। कौम भगवां कपडे की गुलाम है। भगवां कपडे के अन्दर चोर, डाकू, धोखेबाज़ या बलात्कारी सब पूजनीय क्यों हो जाते हैं ?
यह गुलाम और भय व लालच से भरी हुई मानसिकता से ग्रस्त हैं। पढ़ालिखा हो या अनपढ़ सभी है तो समाज का ही हिस्सा। उसी वातावरण में जीते हैं, सांस लेते हैं। फिर उसके विपरीत सोचने की ज़ुर्रत ही नहीं करते।
सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान सवाल करना सिखाते हैं। पूरा पावन योगविशिष्ठ सवाल जवाब का परिणाम ही तो है। अलग-अलग तरह के लोगों के सवालों का जवाब देते हुए योगेश्वर वाल्मीकि दयावान मिलते हैं। यानी सवाल करने को विश्वेश्वर वाल्मीकि व्योम बुरा नहीं मानते।
हम हर बुराई को देख, सुन समझ कर भी चुप रहते हैं। यही सबसे बड़ी कमी है। आज हमने मिट्टी से भरे हीरों को साफ और तराशना शुरू किया तो देखिये परिणाम आपके सामने हैं। ये चित्र 29 अमृत {सितंबर} 2024 के हैं। उम्मीद पैदा होती कि कौम बदल सकती है।
इन्हें ध्यान से देखिए तो पाएँगे कि सभी में एकरूपता दिखाई देगी। दूसरा मिलेगा आपको सुनने की लालसा और क्षमता। तीसरा पाएँगे कि योगामृत की मर्यादा से परिपूर्ण नज़र आएंगे। यह सब जादू की छड़ी से नहीं अपितु निरंतर प्रयास का प्रतिफल है।


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